भोपाल, दिसंबर 2012/ प्रदेश के पिछड़े जिलों में औद्योगिकरण को सहयोग करने में मप्र वित्त निगम अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाने में असफल रहा है। वहीं निगम ने धन की कमी के कारण पिछले पांच सालों में उसने 1 हजार 42 करोड़ 38 लाख के ऋण स्वीकृत करने के बाद केवल 673 करोड़ 6 लाख ही बांट पाई। सुक्ष्म तथा लघु उद्यमों को निगम द्वारा मिलने वाली सहायता साल दर साल कम होती गई। प्रदेश में एमएसएमई के लिए वाणिज्यिक बैंकों द्वारा 93.52 प्रतिशत की तुलना में निगम का बाजार अंश केवल 6.48 प्रतिशत रहा।
भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एकमुश्त भूगतान (ओटीएस) नीति में बकाया राशि वसूलने में दिखाई गई उदारता से निगम को 32 करोड़ 47 लाख की चपत लगी है। कैग रिपोर्ट के अनुसार निगम ने निर्धारित समय-सीमा में ऋण आवेदनों का न तो निराकरण किया है और न ही तय लक्ष्य के अनुसार ऋण वसूली की है। इससे हर साल वसूली की राशि लाखों से करोड़ों में हो गई। वर्ष 2008-09 में निगम को बकायदारांे से 66 लाख स्र्पए वसूलने थे, वह राशि 2010-11 में 5 करोड़ 22 लाख स्र्पए हो गई।
इतना ही नहीं पिछले पांच साल में अधिग्रहित की गई 120 इकाईयों में से 49 के विक्रय एवं वसूली को अंतिम रूप देकर निगम ने 11 करोड़ 7 लाख स्र्पए वसूल किए। वहीं निगम 23 इकाईयों के विक्रय से 5 करोड़ 10 लाख स्र्पए सिर्फ इसलिए वसूल नहीं पाया क्यों कि उनकी विक्रय से प्राप्त राशि पैनाल्टी राशि से कम थी। उल्लेखनीय है कि वित्त निगम की स्थापना राज्य के औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए 1951 में की गई थी। राज्य की प्रमुख वित्तीय संस्थान होने के कारण निगम का उद्देश्य एमएसएमई को स्थापित करने एवं राज्य में औद्योगिक ढ़ांचे को को विकसित करने में सहयोगी भूमिका निभाना है। कैग ने 2006-07 से 2010-11 की अवधि के दौरान कराई गई वित्तीय सहायता की लेखापरीक्षा करने पर यह खुलासा हुआ है।