राजनीति में कब किसकी किस्मत पलट जाए और कब कोई सत्ता के सातवें आसमान से फर्श पर आ जाए यह अनुमान लगाना लगभग नामुनकिन है। जिस लड़के ने छात्रसंघ का चुनाव हारकर क्लर्क की नौकरी पकड़ ली थी वह बिहार के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरेगा यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। कल तक गांव में भैंस चराने वाला लड़का जब मुख्यमंत्री बनकर लौटा तो उसकी मां इसलिए खुश नहीं हुई क्योंकि उसकी सरकारी नौकरी नहीं लग पाई थी। जिस व्यक्ति का नाम कभी किसी ने सुना भी नहीं था अचानक वह पिछड़े, दबे - कुचले लोगों का मसीहा बन गया।

यहां बात लालू यादव की हो रही है। छात्रसंघ चुनाव की तरह ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना लालू के लिए आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ खड़े नेताओं का उपयोग करना पड़ा। आखिरी समय पर तिगड़म लगाकर वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। सत्ता पर काबिज होने के बाद लालू यादव ने ऐसी राजनीतिक पारी खेली जिसकी चर्चा आज तक होती है। साधना कट हेयर स्टाइल, लंबा सफेद कुर्ता मुंह में पान और गांव की भाषा - ये वो बातें थी जो लालू यादव को देश के अन्य नेताओं से अलग बनाती थी। इन सब के चलते लालू यादव सुर्खियों में रहने लगे।

बिहार में चुनाव है। लालू यादव की आरजेडी, कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता में लौटने का मन बना चुकी है। बिहार की जनता ने क्या मन बनाया है, सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा यह तो वक्त बातएगा। हम आपको बताने का जा रहे हैं लालू यादव के बिहार के मुख्यमंत्री बनने की कहानी...कैसे पूर्व पीएम वीपी सिंह के प्रतिद्वंदियों का उपयोग कर लालू यादव मुख्यमंत्री बने...।

साल 1990, बिहार के गोपालगंज का फुलवारिया गांव...लंबा कुर्ता पहने एक 42 साल के व्यक्ति ने अपनी मां के पैर छुए और कहा - 'माई हम मुख्यमंत्री बन गए'

इसके जवाब में उसकी मां ने अचंभे से पूछा - 'ई का हो ला'

व्यक्ति ने जवाब दिया - 'ई जो हथुआ महाराज बड़न, उनको से बढ़।' यानी हथुआ महाराज से भी बड़ा होता है मुख्यमंत्री

मां ने कहा - 'अच्छा ठीक बा, जाए दे लेकिन तोहरा सरकारी नौकरी ना नु मिला।'

कहानी लालू यादव की

कल तक जो लड़का गांव में भैंस चराता था उसके चारों ओर बड़े अधिकारियों और पुलिस वालों का हुजूम था। कल तक जो लड़का पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के चुनाव हार गया था उसकी पहुंच पीएम आवास तक थी। कद्दावर नेता अब उसका लोहा मानने लगे थे। यह कहानी लालू यादव की है जो शुरू हुई गोपालगंज के फुलवारिया गांव से...।

जन्मतिथि मां को भी नहीं पता

लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया में हुआ। मां का नाम मरछिया देवी और पिता का नाम कुंदन राय था। गरीब किसान परिवार से आने वाले लालू यादव को मिलाकर उनके माता - पिता की सात संतान थी। एक बीघा जमीन पर लालू यादव का परिवार किसानी करता था। यहां बता दें कि, लालू यादव का जन्म किस तरीख को हुआ इसका जवाब उनकी मां भी नहीं जानती। इसी कारण जो जन्म तिथि उनके स्कूल सर्टिफिकेट में थी उसे ही सही मान लिया गया।

बिहार नेशनल कॉलेज में दाखिला

लालू यादव मात्र 6 साल के थे जब वे अपने मामा यदुनंद राय के साथ पटना आए। उनके मामा पटना वेटनरी कॉलेज में दूधवाले का काम करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पटना में बिहार मिलिटरी कैंप में हुई। इसके बाद वे मिलर हाई स्कूल चले गए। यहां उन्होंने थर्ड डिवीजन से हाई स्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद लालू की जिंदगी में नया मोड़ आया। उन्होंने बिहार नेशनल कॉलेज, पटना में दाखिला लिया।

1960 के दशक में बिहार नेशनल कॉलेज राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था। राम मनोहर लोहिया ने जवाहरलाल नेहरू के विकास मॉडल के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। समाजवाद के बैनर तले वे OBC वर्ग की आवाज बन गए थे। राज्य की कांग्रेस सरकार को उनसे कड़ी चुनौती मिल रही थी। उस दशक में कांग्रेस का कोर वोट बैंक सवर्ण, दलित और मुस्लिम वर्ग था। पोलिटिकल फ्रेम में जनसंघ भी था लेकिन उसके समर्थक व्यापारी समूह तक सीमित थे।

लालू ने थामा समाजवाद का दामन :

पिछड़े तबके से आने वाले लालू यादव ने कांग्रेस, समाजवाद और जनसंघ में से उसे चुना जिसके साथ वे प्राकृतिक रूप से जुड़े। उन्होंने राम मनोहर लोहिया के समाजवाद के सिद्धांत को गुरु मंत्र माना और राजनीतिक सफर की शुरुआत की।

साल 1970, तारिख 9 मार्च, पटना यूनिवर्सिटी में पहली बार प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव हुए। इसमें लालू यादव महासचिव बने। अगले साल 1971 में लालू यादव ने अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोकी। उन्हें रामजतन सिन्हा ने हरा दिया। अब सिन्हा कांग्रेस के नेता हैं। इस हार से लालू यादव दुखी हुए। उन्होंने एक कॉलेज में क्लर्क की नौकरी पकड़ ली। रूल्ड - मिसरूल्ड नामक किताब के अनुसार अब लालू यादव शादी और एक आम व्यक्ति की तरह जीवन जीने की ठान चुके थे लेकिन तभी कहानी ने नया मोड़ ले लिया।

साल 1973 में लालू प्रसाद यादव समाजवादी युवजन सभा के बैनर तले अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े और जीत गए। उस चुनाव में बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी महासचिव बने और बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद सहायक महासचिव।

बिहार उर्फ जेपी आंदोलन :

1974 में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने बिहार आंदोलन छेड़ दिया। इसे जेपी मूवमेंट के नाम से भी जानते हैं। मसला था गरीबी उन्मूलन के प्रति सरकार का रवैय्या। 1975 आते - आते यह आंदोलन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए सिर दर्द बन गया। 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया गया। लालू यादव भी इस बड़े आंदोलन का हिस्सा थे। जब इस आंदोलन से जुड़े बड़े नेता जेलों में ठूसे गए तो लालू यादव कहां बचते। उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल में रखा गया।

जैसे - तैसे देश आपातकाल से उबरा और 1977 में चुनाव की घोषणा कर दी गई। लोकसभा चुनाव हुए। लालू यादव को जेपी आंदोलन का हिस्सा बनने का लाभ हुआ। उन्होंने 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। वे मात्र 29 साल की उम्र में लोकसभा के सदस्य बन गए।

लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में लालू यादव ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। लेकिन दो साल में जनता पार्टी की सरकार गिर गई। 1980 में दोबारा चुनाव हुए। इस बार लालू यादव ने जनता पार्टी का साथ छोड़कर राज नारायण की जनता पार्टी - S के टिकट पर चुनाव लड़ा। हालांकि वे चुनाव हार गए।

लालू यादव 1980 के अंत में हुए बिहार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे। वे सोनपुर से विधायक चुने गए। हालांकि बहुमत कांग्रेस को मिला। साल 1985 में वे फिर से चुनाव जीते। 1989 में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। बाद में 1989 में, वह लोकसभा के लिए भी चुने गए। 1990 तक, उन्होंने खुद को यादवों और निचली जातियों के नेता के रूप में स्थापित कर लिया था। मुसलमान, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस के वोट बैंक थे, 1989 के भागलपुर हिंसा के बाद लालू यादव के समर्थन में आ गए। वह बिहार के युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हो गए।

1990 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। 324 सीट वाली बिहार विधानसभा में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लालू यादव माहौल समझ गए थे। उनकी नजर अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी। वो कहानी ही क्या जिसमें कोई ट्विस्ट न हो...इस कहानी में भी कई ट्विस्ट और टर्न आए।

लालू यादव मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब सजाने लगे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह लालू यादव को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते थे। प्रधानमंत्री वीपी सिंह चाहते थे कि, पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास सरकार का नेतृत्व करें। 324 विधानसभा सीट में से जनता दल ने 120 सीट जीती। जेएमएम और सीपीआईएम जैसे दलों ने जनता दल को समर्थन किया। तय था कि, जनता दल का ही नेता मुख्यमंत्री बनने वाला है।

वीपी सिंह ने मुख्यमंत्री चुनने के लिए 7 मार्च को तीन पर्यवेक्षकों का दल पटना भेजा। इनमें अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस और सुरेंद्र मोहन शामिल थे। लालू यादव को जब इस बारे में पता चला तो उन्हें समझ आ गया था - सीधी उंगली से घी निकलने वाला नहीं है। उन्होंने उप प्रधानमंत्री देवी सिंह से संपर्क किया।

विधानसभा चुनाव से पहले जब लालू यादव सांसद बने उन्होंने देवी सिंह से अपनी नजदीकियां बढ़ा ली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और देवी सिंह के बीच उन दिनों सबकुछ ठीक नहीं था। लालू यादव की मदद के लिए देवी सिंह ने पटना में पर्यवेक्षक के रूप में अपने दो आदमी भेजे। इनमें शामिल थे मुलायम यादव और शरद यादव।

8 मार्च 1990 को दिनभर पटना में बैठकों का दौर जारी रहा। आशा थी की आमसहमति से मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हो लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। लालू यादव मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में अड़े रहे। लालू यादव यह भांप गए थे कि, सिर्फ देवी लाल उनकी मदद के लिए काफी नहीं है।

उन्होंने एक अन्य कद्दावर नेता चंद्रशेख को 7 मार्च को कॉल मिलाया था। चंद्रशेखर उन दिनों वीपी सिंह से खासा नाराज थे। विरोध ऐसा कि, वीपी सिंह के खिलाफ चंद्रशेखर किसी भी हद तक जा सकते थे। लालू यादव ने उन्हें चेताया कि, अगर कुछ नहीं किया गया तो वीपी सिंह का विश्वसनीय बिहार का मुख्यमंत्री बन जाएगा।

चंद्रशेखर ने शिवहर से चुनाव जीतकर आए रघुनाथ झा से संपर्क किया। रघुनाथ झा, चंद्रशेखर के पुराने समर्थक थे। चंद्रशेखर के कहने पर उन्होंने भी अपना नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में आगे बढ़ा दिया। इस बैकग्राउंड स्टोरी के बाद अब बारी थी विधायकों की वोटिंग की।

मैदान में थे राम सुंदर दास, लालू यादव और रघुनाथ झा। 12 विधायकों ने रघुनाथ झा को वोट किया। 56 विधायकों ने वोट किया राम सुंदर दास को। सबसे अधिक वोट मिले लालू यादव को। राम सुंदर दास से 3 वोट अधिक पाकर लालू यादव विधायक दल के नेता बन गए। सत्ता के इस खेल में रघुनाथ झा की दावेदारी लालू यादव के लिए वरदान साबित हुई।

दलित और पिछड़ों के मसीहा बने

Anchor - लालू यादव ने जब पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली दलित और पिछड़ों के मन में उम्मीद जाग गई। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शपथ के लिए राज भवन की जगह गांधी मैदान को चुना। 10 मार्च 1990 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद लालू यादव ने कहा - अब कोई अत्याचार नहीं होगा, अब कोई जुल्म नहीं होगा, अब कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा, अब कोई बेईमानी नहीं होगी, ये कसम हम खाएं हैं, अब असल लोकतंत्र बनाना है, लोगों का लोकतंत्र...।

ये थी लालू यादव के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की कहानी अगले अध्याय में जानेंगे लालू यादव ने आखिर कैसे बिहार में अपनी सत्ता जमाई और क्यों कहलाया लालू यादव का मुख्यमंत्री काल - ‘गुंडा राज’ ।

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