Two districts of MP at loggerheads over white tiger Mohan : साल 1951, रीवा के तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह (Maharaja of Rewa, Martand Singh) ने सीधी के जंगलों में एक विचित्र जानवर देखा। कहने को तो यह बाघ था लेकिन इसकी सफेद खाल महाराजा के लिए किसी अचंभे से कम नहीं थी। इस बाघ को जो कोई भी देखता वो चौंक जाता क्योंकि इसके पहले दुनिया में किसी ने सफेद बाघ नहीं देखा था। अपने रंग के चलते सभी को मोह लेने वाले इस बाघ का नाम रखा गया मोहन।

अब सात दशक बाद 'मोहन' को लेकर मध्यप्रदेश के दो जिले आमने - सामने हैं। सवाल विरासत पर दावेदारी का है। किसका पलड़ा भारी है और विवाद की असल वजह क्या है यह जानने के लिए पढ़िए यह पूरा लेख...।

1951 में रीवा के तत्कालीन महाराजा द्वारा पकड़े गए सफेद बाघ मोहन (white tiger Mohan)  की विरासत पर किसका अधिकार है यह सवाल अब मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा हो गया है।मोहन दुनिया के लगभग सभी सफेद बाघों का पूर्वज है। इसके चलते यह सवाल मध्य प्रदेश में जिलों के बीच तनाव का कारण बन गया है।

दरअसल, मध्यप्रदेश में जिलों की सीमा का पुनर्निर्धारण हो रहा है। कुछ जिले बड़े है तो कुछ छोटे, ऐसे में सरकार द्वारा एक आयोग का गठन किया जा रहा है जिससे जिलों में एक रूपता आ सके और प्रशासनिक तौर पर काम करने में आसानी हो।

7 अगस्त को मैहर जिला प्रशासन के एक पत्र में सुझाव दिया गया था कि दुनिया के एकमात्र सफेद बाघ सफारी वाले मुकुंदपुर को पड़ोसी जिले रीवा में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए। जैसे ही यह जानकारी लोगों के सामने आई वैसे ही दोनों जिलों के राजनेता और आम लोग आपस में भिड़ गए। मैहर के लोग प्रशासन के इस कदम के सख्त खिलाफ हैं। वहीं रीवा के लोग इसे अपनी विरासत की घर वापसी बता रहे हैं।

सफेद बाघ मोहन के चलते विंध्य क्षेत्र में राजनीति गरमा गई है। मैहर जिला प्रशासन के पत्र में राज्य के प्रशासनिक सीमा पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों का हवाला देते हुए मैहर से रीवा ज़िले में एक नया बसेरा बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।

कागज़ पर भले ही यह सीमाओं को फिर से बनाने का मामला है लेकिन जमीनी स्तर पर, यह इतिहास, पर्यटन राजस्व और राजनीतिक प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है। मुकुंदपुर और पांच पड़ोसी पंचायतों - आनंदगढ़, अमीन, धोबाघाट, परसिया और पापरा को रीवा की आधिकारिक सीमाओं में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

एक सावधानीपूर्वक प्रबंधित प्रजनन कार्यक्रम के माध्यम से 'मोहन' दुनिया भर के लगभग सभी सफेद बाघों का पिता है। उसकी छवि रीवा की शाही विरासत और विंध्य की पहचान का पर्याय बन गई है। 2016 में शुरू की गई मुकुंदपुर सफेद बाघ सफारी, मोहन की कहानी पर आधारित दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र सुविधा है।

रीवा के लिए, सफारी सिर्फ़ एक आकर्षण से कहीं बढ़कर है—यह जन्मसिद्ध अधिकार है। मोहन, 1951 में रीवा के तत्कालीन महाराजा द्वारा पकड़ा गया सफ़ेद बाघ शावक, दुनिया भर में क़ैद में रखे गए लगभग सभी सफ़ेद बाघों का पूर्वज बन गया। उसके भरवां अवशेष आज भी रीवा महल संग्रहालय की रखवाली करते हैं, उसकी कहानी इस क्षेत्र की पहचान में अंकित है।

रीवा के लोगों का मानना है कि, सफारी को रीवा की आधिकारिक सीमाओं में लाने से "मोहन घर वापस आ जाएगा" लेकिन मैहर में, यह कदम एक शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण की तरह देखा जा रहा है।

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